Thursday, November 24, 2011

गाँव की ओर(काव्यात्मक लघु कथा)


गाडी खराब हो गयी थी
पानी भी समाप्त हो गया
मदद की तलाश में
चलता गया
एक खेत नज़र आया
जा कर बिछी खाट पर 
बैठ गया
खेत का मालिक
झोंपड़े से निकल कर
 बाहर आया
सारा दुखड़ा सुना
कहने लगा कोई बात नहीं
सब ठीक हो जाएगा
पहले आराम कर लो
फिर कुछ खा लो
फिर सोचेंगे क्या करना है ?
उसकी पत्नी ने
सरसों का साग
मक्का की रोटी खिलाई
छाछ से भोजन का
 पटाक्षेप किया
तब तक ग्रामीण ने
कुछ लोगों को बुला लिया
कहने लगा 
चलो इंतजाम हो गया
अब सब ठीक हो जाएगा
चलते चलते मैं सोचने लगा
ना जान पहचान
फिर भी इतना मानवीय व्यवहार
इतना ख्याल और मदद
इतना बढ़िया भोजन
जिसके लिए होटलों में
घंटों बैठना पड़ता
मुंहमांगे 
पैसे खर्च करने पर भी
नहीं मिलता
आज केवल इंसान का
इंसान से प्यार होने पर मिला
ग्रामीण के पास अधिक नहीं है
फिर भी उसे दूसरों के
कष्ट का ध्यान है
मन में सवाल कोंधने लगा
क्यों होड़ और अधिक पाने की
इच्छा में
गाँव छोड़ शहर गया
बहुत कमाने के बाद भी
इतना प्यार शहर में कभी
ना मिला
किसी को किसी के लिए
समय नहीं
निरंतर दिखावे और मुंह पर
चिपकी झूठी मुस्कान के सिवाय
कुछ भी तो नहीं शहर में
क्यों फिर आडम्बर के साथ
जीता रहूँ
अधिक धन के लिए खुद से
लड़ता रहूँ
दिन रात झूझता रहूँ
फिर भी संतुष्टी का
नाम-ओ-निशान नहीं
ना ठीक से सो पाता
ना खुशी से जी पाता
अब फैसला कर लिया
जितना ज़ल्दी हो सकेगा
मैं भी गाँव लौटूंगा
ऐसी नियत बनी रहे
इसके लिए कम में गुजारा 
करूँगा
औरों के काम आ सकूं
ऐसा कुछ करूँगा
 शायद ही कोई होगा
जिससे से भूल नहीं होती
पर भूल भूल सुधारना
आवश्यक है
चाहे खुद के सुधारने से सुधरे
या किसी के कहने से सुधरे
कई बार इंसान को
समझ ही नहीं आता
सुधार कैसे किया जाए
उस स्थिती में दूसरों की
मदद लेना आवश्यक
होता है
सुधार करने के लिए
निरंतर खुले दिल से
सुझाव लेने भी आवश्यक
होते हैं 
उसमें परहेज़ नहीं रखना
चाहिए
24-11-2011
1813-84-11-11

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