Sunday, November 27, 2011

हमसे रहा ना गया


हमसे रहा ना गया
उनकी तारीफ़ में
एक शेर पढ़ दिया
उन्होंने उसे
इज़हार-ऐ-मोहब्बत
समझ
हमसे मुंह फिरा लिया
कैसे समझाऊँ उन्हें ?
इज़हार-ऐ-मोहब्बत नहीं
इज़हार-ऐ-इज्ज़त थी
इज्ज़त बख्शना भी
गुनाह हो गया
हकीकत बयान करना
दर्द-ऐ-दिल बन गया
27-11-2011
1823-88-11-11

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