Tuesday, November 22, 2011

शक और स्वार्थ (काव्यात्मक लघु कथा)


संतानहीन बूढा सेठ
बुढापे से चिंतित था
बुढापा आराम से कटे
कोई सेवा करने वाला
मिल जाए
मन में खोट लिए
निरंतर सोचता था
सेवा करेगा तो ठीक
नहीं तो निकाल बाहर
करूंगा
भाग्य ने साथ दिया
एक रिश्तेदार के
बेटे को गोद ले लिया
उससे सेवा की उम्मीद
करने लगा
गोद लिया बेटा भी
कम नहीं था
वो भी सोचता कब
सेठजी दुनिया से जाएँ
कब वो जायदाद का
मालिक बन जाए
कहीं ऐसा नो हो
सेवा मैं करूँ
सेठजी धन जायदाद
किसी और को दे जाएँ
द्वंद्व में दोनों उलझे रहते
एक दूसरे पर शक करते
निरंतर
नए दांव पैतरे चलते
दिन निकलते गए
सेठजी सेवा की आस में
बीमारी से लड़ते लड़ते
स्वर्ग सिधार गए
सारी जायदाद
अनाथालय को दे गए
गोद लिया बेटा दो बाप
होते हुए भी अनाथ
हो गया
शक और स्वार्थ ने
दोनों को संतुष्ट
नहीं होने दिया
22-11-2011
1808-79-11-11

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