Sunday, November 20, 2011

इसी में खुश रहती हूँ


उसकी
चुनडी ,लहंगा
पुराना पैबंद
लगा होता था
पर उसे सूर्ख रंगों की
चूड़ियां
पहनने का शौक था
जब भी आती
कलाईयों में पहनी
चूड़ियों को खनकाती
रहती
एक बार रहा ना गया
उसे कह ही दिया
इतने पैसे चूड़ियों पर
खर्च करती हो
कुछ पैसे कपड़ों पर भी
खर्च कर लिया करो
उसका मुंह रुआंसा 
हो गया
आँखें भर आयी
कहने लगी बाबूजी
चूड़ियां खरीदती नहीं हूँ
तीसरी गली वाले 
बाबूजी की
चूड़ियों की दूकान है
वहां झाडू लगाती हूँ
काम के बदले में
पैसे की जगह चूड़ियां
लेती हूँ
रंग बिरंगी चूड़ियां
मुझे गरीबी का
अहसास नहीं होने देती
एक यही इच्छा है
जो पूरी कर सकती हूँ
निरंतर 
इसी में खुश रहती हूँ
20-11-2011
1802-73-11-11

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