धूल के
कण से कण मिला
मिलकर गुबार बना
तेज़ हवाओं ने उसे
बवंडर बना दिया
धूल का कण
अहम् अहंकार से
भर गया
अपने को शक्तिशाली
समझने लगा
संसार को अपने
अधीन करने की इच्छा में
वीभत्स रूप दिखाने लगा
जो भी सामने आया
उसे ढक दिया
अपने रंग में रंग दिया
इंद्र ने आकाश से देखा
धूल का मंतव्य समझ गया
घमंड को तोड़ने
वर्षा को भेज दिया
वर्षा ने भी रूप अपना
दिखाया
शीतल जल से
बवंडर को ठंडा किया
उसके घमंड को
शांती से दबा,धूल को
पानी में बहा दिया
दुनिया को दिखा दिया
अहम् अहंकार का
स्थान नहीं दुनिया में
ठंडक से
अग्नि भी कांपती
शांती निरंतर
विनाश से बचाती
(धूल से मेरा अभिप्राय ,निकम्मे,भ्रष्ट
एवं निम्न स्तर और सोच वाले
व्यक्तियों से है ,
जो येन केन प्रकारेण,
राजनीती की सीढियां चढ़ कर,
सत्ता के गलियारों में पहुँचते हैं
और सब कुछ अपने
अधीन करने का प्रयास करते हैं,
वर्षा के ठन्डे पानी से अभिप्राय,
सब्र से जीने वाली जनता से है ,
प्रजातंत्र में ,जनता उन्हें ठन्डे तरीके से
चुनाव के समर में उखाड़ फैंकती है)
25-11-2011
1820-85-11-11
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