Friday, November 25, 2011

धूल के कण से कण मिला


धूल के
कण से कण मिला
मिलकर गुबार बना
तेज़ हवाओं ने उसे
बवंडर बना दिया
धूल का कण
अहम् अहंकार से
भर गया
अपने को शक्तिशाली
समझने लगा
संसार को अपने
अधीन करने की इच्छा में   
वीभत्स रूप दिखाने लगा
जो भी सामने आया
उसे ढक दिया
अपने रंग में रंग दिया
इंद्र ने आकाश से देखा
धूल का मंतव्य समझ गया
घमंड को तोड़ने
वर्षा को भेज दिया
वर्षा ने भी रूप अपना
दिखाया
शीतल जल  से
बवंडर को ठंडा किया
उसके घमंड को
शांती से दबा,धूल को
पानी में बहा दिया
दुनिया को दिखा दिया
अहम् अहंकार का
स्थान नहीं दुनिया में  
ठंडक से
अग्नि भी कांपती
शांती निरंतर
विनाश से बचाती
(धूल से मेरा अभिप्राय ,निकम्मे,भ्रष्ट 
एवं निम्न स्तर और सोच वाले
व्यक्तियों से है ,
जो येन केन प्रकारेण,
राजनीती की सीढियां चढ़ कर,
सत्ता के गलियारों में पहुँचते हैं
और सब कुछ अपने 
अधीन करने का प्रयास करते हैं,
वर्षा के ठन्डे पानी से अभिप्राय,
सब्र से जीने वाली  जनता से है ,
प्रजातंत्र में ,जनता उन्हें ठन्डे तरीके से
चुनाव के समर में  उखाड़ फैंकती है)

                                   25-11-2011
                                      1820-85-11-11

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