मैंने भी
सपना देखा था
कोई मुझे भी मिल जाए
अपना जिसे कह सकूँ
साथ हँसू ,साथ घूमूँ
हाथ में हाथ डाल के
छोटा सा संसार हो मेरा
स्वछन्द जिसमें रह सकूँ
खुशी से जी सकूँ
प्यार की निशानी को
जन्म दूं
घर का आँगन जिसकी
किलकारियों से गूंजे
साथ भी मिला,घर भी मिला
पर सफ़र अधूरा रह गया
काल के क्रूर हाथों से
खुशियों का संसार देखा
ना गया
मेरा देवता मुझसे
छीन लिया
जीवन शून्य हो गया
निरंतर आंसू बहाने के लिए
यादों के सहारे छोड़ दिया
कैसे सहूँ
विछोह प्रियतम का
समझ नहीं पाती हूँ
कसम खाती हूँ
अब ना देखूंगी सपना कभी
हर अबला से कहूंगी
सपनों पर विश्वास ना करे
टूटते हैं तो मौत से कम
नहीं होते सपने
मैंने भी सपना देखा था
कोई मुझे भी मिल जाए
अपना जिसे कह सकूँ .....
21-11-2011
1806-77-11-11
No comments:
Post a Comment