क्या करूँ?
मजबूरी में हँसता हूँ
ग़मों को छुपा कर
रखता हूँ
लोगों से डरता हूँ
सवालों से बचता हूँ
दिलासा के नाम पर
सैकड़ों सवाल पूछेंगे
जवाब पर यकीन
ना करेंगे
निरंतर नश्तर चुभायेंगे
ग़मों को भूलने ना देंगे
ज़ख्मों को फिर से हरा
कर देंगे
मुझे जीने ना देंगे
06-11-2011
1751-20-11-11
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