Tuesday, October 4, 2011

भावनाओं में



क्यों हम
भावनाओं में
निरंतर बहते जाते
तेज़ गति से आगे
बढ़ते जाते
कभी नहीं सोचते
जो हमारे लिए आवश्यक
किसी और का दर्द होता
स्वयं की इच्छाओं को
पूरा करने में
कुंठित हो जाते
ध्यान भी नहीं आता
किसी को
अच्छा नहीं लगेगा
ह्रदय उसका
पीड़ा से रोयेगा
क्यों ठहर कर अपने
आस पास नहीं देखते
लोगों को
साथ नहीं लेते
अपने
स्वार्थ के आगे अंधे
हो जाते
मन की शांती खोते
जीवन भर रोते रहते
परमात्मा के घर से
दूर शैतान के यहाँ
बसते
बिना सोचे समझे
निरंतर भावनाओं में
बहते रहते
04-10-2011
1610-18-10-11

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