Tuesday, February 8, 2011

अब ऊंची कुर्सी पर बैठ गए,पहले वकील थे,अब ज़ज़ हो गए

211--02-11


अब ऊंची कुर्सी पर
बैठ गए
पहले वकील थे,अब ज़ज़
हो गए
पहले मुवक्किल को ग्राहक
समझते
तारीख पर तारीख लेते
हर तारीख पर फीस लेते
अब समय सीमा में बांधते
नहीं तो कनटैम्पट ऑफ कोर्ट
मानते
मौके बेमौके हड़ताल
करते
अब हड़ताल को न्याय का
हनन मानते
पहले खुले आम सिस्टम को
गाली देते
अब चुपके से भी नहीं बोलते
पहले हित अपना देखते
अब जनहित में फैसले करते
मुवक्किल चाहे बिक जाए
मुकदमा वर्षों घसीटते
कभी खुलेआम
क़त्ल करने वाले को
निर्दोष दर्शाते
निरंतर मुवक्किल को बचाना
कर्तव्य अपना बताते
कातिल और क़त्ल होनेवाले में
फर्क नहीं रखते
अब सज़ा मौत की सुनाते
पहले वकालत करते थे
अब फैसले सुनाते
वक़्त के हिसाब से
रंग रूप बदलते रहते
खुद को मौके के हिसाब से
ढालते रहते
05-02-2011  
(हर पेशे में काली भेडें
होती हैं, यह रचना  वकालत के पेशे के, केवल एक पक्ष को उजगार करती है ,किसी की भावना को ठेस पहुंचाना या वकालत और न्याय व्यवस्था पर आक्षेप लगाना कदापि उद्देश्य नहीं है .क्षमा प्रार्थी हूँ अगर किसी को पढ़ कर कष्ट हुआ हो.कृपया दिल से ना लगाएं )

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