Tuesday, September 27, 2011

कुछ कुंठाएं जीवन भर दबी रहती


कुछ कुंठाएं
जीवन भर
दबी रहती हैं
कभी-कभी
बुल-बुले की तरह
उठती-फूटती हैं
निरंतर मन को
विचलित करती हैं
कैसे बाहर निकले?
कोई पथ दिखा दे
कौन है जो पूरी कर दे
अधूरी इच्छाएं ,
आकांक्षाएं ?
शायद कोई समझ ले
बात मन की
कुछ कुंठाएं हो जाती हैं
समाधिस्थ
मन की गहराइयों में
अर्ध-मन से जीते हुए
दबी रहती हैं
जीवन भर.....
मन के एक कोने में
तडपाने के लिए ........
27-09-2011
1568-139-,09-11

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