क्यों हार से घबराता है ?
व्यथित हो कर रोता है
ये भी ता ध्यान कर
सूर्य भी चमक अपनी
खोता
शाम तक मंद होता
फिर अस्त होता
आकाश पर रात भर
चाँद का आधिपत्य होता
भोर होते होते चाँद भी
थक कर पस्त होता
नए चमकते सूर्य को
स्थान देता
हार जीत जीवन का मर्म
क्यों ह्रदय से लगाता है ?
बहुत रो लिया
बहुत कर लिया विश्राम
अब उठ खडा हो जा
कर्म अपना करता चल
इक दिन तूँ भी सफल होगा
भाग्य तेरा भी उदय होगा
सूर्य सा चमकेगा
हिम्मत ना हार
जीवन जैसा भी आये
गले लगाता चल
निरंतर आगे बढ़ता चल
बिना रुके तूँ चलता चल
12-09-2011
1494-66-09-11
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