Tuesday, September 27, 2011

नेपथ्य में …..

नेपथ्य में
चलता है सोच
आती हैं यादें
उमड़ता है प्यार
तंग करती है व्यथा
होती है चिंता
मन में आशंकाएं ,
आकांशाएं 
निरंतर जन्म लेती
फिर लोप हो जाती 
सुख, दुःख से भरी
भावनाएं
मन को घेरे रहती
सामने लगा होता है
मुखौटा
होड़ में स्वयं को
सब से अच्छा बताता
खुशी से भरी  मुस्कान
मन के दुराव को
छुपाती
प्रसाधनों से सजाया
कृत्रिम सौन्दर्य
वस्त्रों की चमक दमक
शरीर पर आभूषण
सम्पन्नता का दिखावा
प्यार भरे बनावटी शब्द
मुंह से निकलते
निश्छल सौम्य चेहरा
मन,ह्रदय और शरीर की
कुरूपता को छुपाता
नेपथ्य को
आगे नहीं आने देता
मन को झूंठी संतुष्टी
प्रदान करता
नेपथ्य में मन
रोता रहता
ना संतुष्ट रहता
ना संतुष्टी के
पथ पर चलता
मुखौटा स्वभाव का 
अटूट अंग

सब को भाता
जीवन के
अंतिम क्षण तक
साथ निभाता
28-09-2011
1575-146-09-11

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