Wednesday, September 21, 2011

हास्य कविता-हँसमुखजी पत्नी व्रत थे

हँसमुखजी पत्नी व्रत थे
पत्नी के हिस्से के
सारे काम करते थे
कपडे से
बर्तन तक धोते थे
पत्नी भी
पूर्ण पतीव्रता थी
पत्नी धर्म
श्रद्धा से निभाती थी
रात
कितनी भी हो जाए
ठण्ड
कितनी भी बढ़ जाए
बर्तन धोने के लिए
निरंतर गरम पानी
तैयार रखती थी
जब तक
पूरे ना धुल जाएँ
ना खुद सोती ना
उन्हें सोने देती
रजाई में घुस कर
होंसला बढाती
थक जाओ तो दो कप
चाय बना लेना
पहले मुझे पिला देना
फिर खुद पी लेना
नहीं थको तो आकर
मेरे पैर दबा देना
कह कर पत्नी धर्म
निभाती थी
21-09-2011
1536-107-09-11

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