Thursday, September 29, 2011

क्यों दोष देते हो?

क्यों दोष देते हो?
मुझ पर ऊंगली उठाते हो
क्यों सत्य से भागते हो ?
क्या तुम खुद वह
नहीं करते?
जो मैं करता हूँ
कौन है?जिसे कोई दूसरा
नहीं भाता ?
निरंतर उसके मन को
नहीं लुभाता
जिसे जानते नहीं
मन उस से
मिलने का नहीं करता
क्यों हर चाहत में स्वार्थ
खोजते हो ?
क्या सम्बन्ध निश्छल
नहीं हो सकते ?
फिर क्यों सदा ऐसा ही
सोचते हो ?
अपने गिरेबान में झांको
क्या मन तुम्हारा
स्वच्छ है?
पहले स्वयं के सोच को
स्वच्छ करो
फिर किसी और से कहो
क्यों किसी को
चाहते हो?
उस से मिलने की
इच्छा रखते हो
 29-09-2011
1583-154-,09-11

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