Tuesday, September 13, 2011

पहाड़ों की रक्षा करो

दूर पहाड़ों में
टिमटिमाती बत्तियां
गगन में जगमगाते
तारों  सी दिखती
निमंत्रण देती
छोड़ दो अब
लुटी हुयी धरती  को
पैसे के लिए 
कटे हुए पेड़ों और
कंक्रीट के जंगल को
निरंतर धूल मिट्टी से
पीछा छुडाओ 
आ जाओ पहाड़ों में
बादलों से
अठखेलियाँ करो
ठंडी,ताज़ी हवा के
झोके खाओ
मन के गीत गाओ
पंछियों से बातें करो
प्रकृति की गोद में
जीवन बिताओ
जो नहीं कर सके
धरती पर
वो पहाड़ों में करो
इश्वर के वरदान का
सम्मान करो
धन लोलुप इंसानों से
13-09-2011
1498-70-09-11

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