दूर पहाड़ों में
टिमटिमाती बत्तियां
गगन में जगमगाते
तारों सी दिखती
निमंत्रण देती
छोड़ दो अब
लुटी हुयी धरती को
पैसे के लिए
कटे हुए पेड़ों और
कंक्रीट के जंगल को
निरंतर धूल मिट्टी से
पीछा छुडाओ
आ जाओ पहाड़ों में
बादलों से
अठखेलियाँ करो
ठंडी,ताज़ी हवा के
झोके खाओ
मन के गीत गाओ
पंछियों से बातें करो
प्रकृति की गोद में
जीवन बिताओ
जो नहीं कर सके
धरती पर
वो पहाड़ों में करो
इश्वर के वरदान का
सम्मान करो
धन लोलुप इंसानों से
13-09-2011
1498-70-09-11
No comments:
Post a Comment