प्रभु कैसी
लीला तुमने रचायी
क्यों दुखों की दुनिया
दिखायी ?
मेरे सपनों की दुनिया में
क्यों आग लगायी ?
रातों की नींद उडायी
बेचैनी से दोस्ती करायी
ना मन को कुछ सूझे
ना दिल को कुछ भाए
निरंतर आँखों से आंसूं
बहते जाएँ
हंसना मुस्काराना
इतिहास हो गए
जीवन मरण इकसार
हो गए
जो बीत रहा मुझ पर
अब सहा नहीं जाए
कैसे किसी को बताऊँ?
किस से आस लगाऊँ ?
कहाँ जा कर शीश
नवाऊँ ?
किस मंदिर में पूजा करूँ?
पथ मुझे दिखाओ
अब और ना तडपाओ
निरंतर रुदन से मुक्त करो
कोई नया लीला रचाओ
26-09-2011
1559-130-09-11
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