छोर नहीं दिखता
जिसका
ज़िन्दगी उस सागर सी
नज़र आती
निरंतर कभी ज्वार
कभी भाटा जीवन में
आता रहता
कभी खामोश कभी
क्रोध से उफनता
भावनाओं की लहरें
कभी छू कर चली जाती
कभी मन मष्तिष्क को
सरोबार करती
मन की गहराइयों में
पीड़ा और प्यार की
जुगलबंदी
बनती बिगडती रहती
बिना शोर मचाये
सागर सी रहस्मय
ज़िन्दगी बहुत कुछ
सहती रहती
11-09-2011
1485-57-09-11
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