Wednesday, September 21, 2011

ना जाने कौन सा इम्तहान लेते हैं ?

बहुत तड़पाते
निरंतर
इंतज़ार कराते
वक़्त की सुइयों को
ठहरा देते
बादल सा कड़कते
मगर खुल कर
बरसते नहीं
ना जाने किस बात की
सज़ा देते हैं
वो कमज़ोरी हमारी
ये भी वो जानते हैं
उनके बिना
हम रह ना पाते
ना जाने कौन सा
इम्तहान लेते हैं ?
क्यूं रुला रुला के
हँसाते हैं ?
21-09-2011
1535-106-09-11

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