मुझे पता है
वो छिप कर देख रहे
निरंतर
वो छिप कर देख रहे
निरंतर
मेरी हरकतों पर
नज़र रख रहे
दिल-ऐ-बेकाबू को
काबू में कर रहे
मन तो
उनका भी होता
दो बात कर लें
हम से
पर घबरा के रह
जाते
निरंतर कदम आगे
बढ़ा कर पीछे
हटते
हम भी क्या करें ?
नज़र रख रहे
दिल-ऐ-बेकाबू को
काबू में कर रहे
मन तो
उनका भी होता
दो बात कर लें
हम से
पर घबरा के रह
जाते
निरंतर कदम आगे
बढ़ा कर पीछे
हटते
हम भी क्या करें ?
कैसे समझायें उन्हें ?
क्यों यकीन
नहीं उन्हें खुदा पर ?
क्यूं शक
रखते हर इंसान पर ?
जब तक
चाहे इम्तहान ले लें
यकीन
अपना पक्का कर लें
पर खुद गर्ज़ ना
क्यों यकीन
नहीं उन्हें खुदा पर ?
क्यूं शक
रखते हर इंसान पर ?
जब तक
चाहे इम्तहान ले लें
यकीन
अपना पक्का कर लें
पर खुद गर्ज़ ना
समझें हम को
27-09-2011
1571-1402-,09-11
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