दिन भर के
काम की परिणिति
थकान में होती
रात होते ही आँखें
नींद से बोझिल
होने लगती
बिस्तर पर लेटते ही
बंद हो जाती
नींद की गोद में
समा जाती
आहट भी ना होती
वो चली आती
नींद उड़ जाती
आँखें खुल जाती
मुस्काराते हुए
वो लौट जाती
रात भर आँखें
खुली रहती
ना वो ना नींद
फिर लौट कर आती
वो निरंतर
ऐसा ही करती
सपनों की दुनिया को
उजाडती
नींद पूरी नहीं होती
दिल की तड़प
आँखों की प्यास
कभी पूरी नहीं होती
09-09-2011
No comments:
Post a Comment