Wednesday, September 21, 2011

कैसे सोच लिया तुमने ?

कैसे सोच लिया
तुमने ?
मिट जायेंगे मेरे
घर से
तुम्हारे क़दमों के
निशाँ
नहीं मिट सकती
मेरे जहन से
तुम्हारे लफ़्ज़ों की
खुशबू
नहीं मिट सकती
मेरे आगोश से
तुम्हारे जिस्म की
खुशबू
नहीं मिट सकती
दिल के आईने से
तुम्हारी  तस्वीर
अंदाज़-ऐ-नफरत
कितना भी दिखाओ 
नहीं मिट सकती
शमा-ऐ-मोहब्बत
की रोशनी
जो तुमने निरंतर
दिल में जलायी
21-09-2011
1533-104-09-11

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