Saturday, September 10, 2011

सायों को अपना समझ बैठा था

उन्हें ख़त लिखा
चुनिन्दा लफ़्ज़ों से
उसे सजाया
बहुत शिद्दत से
इंतज़ार किया
मगर उनका
जवाब नहीं आया
निरंतर बेरुखी ने
दिल को तोड़ दिया
हकीकत से वाकिफ
कराया
बहती हवाओं को
थामने चला था
सायों को अपना
समझ बैठा था
उनकी
मुस्काराहट को
मोहब्बत
मान बैठा था
ख़्वाबों को
मंजिल समझ
लिया था
10-09-2011
1478-50--09-11

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