ख्यालों की
दुनिया में खोने लगा था
हवाई किले बनाने
लगा था
नामुमकिन को मुमकिन
बनाने चला था
खुद ही कयास लगाने
लगा था
खुद को सबसे बेहतर
समझने लगा था
निरंतर रात को दिन
समझने लगा था
हर चाल पर मात खाने
लगा था
रंजो गम में जीने
लगा था
आइना देखना भूल
गया था
खुद को औकात से
ज्यादा समझने
लगा था
12-09-2011
1492-64-09-11
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