Tuesday, September 13, 2011

खुद को औकात से ज्यादा समझने लगा था


ख्यालों की
दुनिया में खोने लगा था
हवाई किले बनाने
लगा था
नामुमकिन को मुमकिन
बनाने चला था
खुद ही कयास लगाने
लगा था
खुद को सबसे बेहतर
समझने लगा था
निरंतर रात को दिन
समझने लगा था
हर चाल पर मात खाने
लगा था
रंजो गम में जीने
लगा था
आइना देखना भूल
गया था
खुद को औकात से
ज्यादा समझने
लगा था
12-09-2011
1492-64-09-11

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