Sunday, September 18, 2011

जो भी हँस के मिला,उसे गले लगाता रहा

उसे गले लगाता रहा
दिल उसी को देता रहा 
हर लम्हा सहारा दिया
मंजिल उसे मान  लिया
उसेके ग़मों को निरंतर 
खुद का समझता रहा
खुद चुपचाप सहता रहा
उसे हमेशा हँसाता रहा
किस बात से  रुसवा हुए
पता भी ना चलने दिया
हसरतों की किश्ती  को
मंझधार में छोड़ दिया
मरने से पहले ही कई
बार दोजख देख लिया
19-09-2011
1524-95-09-11

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