Thursday, September 15, 2011

थोड़े में जीना होगा

अनगिनत
इच्छाएं रखता था
निरंतर
सपने बुनता था
इच्छाओं पर
नियंत्रण ना था
एक पूरी होती
दूसरी के 
लिए रोता था
सदा 
असंतुष्ट रहता था
उसे पता नहीं था
चैन रेगिस्तान में
सामान होता
मृग सा मन खोज में
भटकता रहता
निरंतर अतृप्त रहता
चैन पाना
तो मन मष्तिष्क को
वश में रखना होगा
संतुष्टी को
 उद्देश्य बनाना होगा
जीवन को
सादा बनाना होगा
थोड़े में जीना होगा
15-09-2011
1507-79-09-11

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