अनगिनत
इच्छाएं रखता था
निरंतर
सपने बुनता था
इच्छाओं पर
नियंत्रण ना था
एक पूरी होती
दूसरी के
लिए रोता था
सदा
असंतुष्ट रहता था
उसे पता नहीं था
चैन रेगिस्तान में
सामान होता
मृग सा मन खोज में
भटकता रहता
निरंतर अतृप्त रहता
चैन पाना
तो मन मष्तिष्क को
वश में रखना होगा
संतुष्टी को
उद्देश्य बनाना होगा
जीवन को
सादा बनाना होगा
थोड़े में जीना होगा
15-09-2011
1507-79-09-11
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