जब भी मुस्कराए
किसी की नज़र के
शिकार हो गए
दो कदम आगे बढाए
जालिमों ने कांटे
बिछा दिए
हम खामोशी से
बैठ गए
लोगों ने मसले खड़े
कर दिए
लोग जहर उगलते रहे
हम खुशी से निगलते रहे
निरंतर नफरत से
लड़ते लड़ते
हम हँसना भूल गए
जीने की चाहत में
हम फिर भी ना रोए
हिम्मत से सहते रहे
धीरे धीरे चलते रहे
उनकी तंगदिली पर
हँसते रहे
14-09-2011
1504-76-09-11
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