Thursday, September 22, 2011

टूटे हुए मंज़र

दिन भर निरंतर
उनके इंतज़ार में
डूबे रहते
आँखों में हसरत के
टूटे हुए मंज़र होते
शाम तक बुझे हुए
चिराग सा दिखते
ग़मों के बोझ
सोने भी ना देते
रात भर सुबह का
इंतज़ार करते
ज़िन्दगी
निरंतर यूँ ही
तमाम करते
22-09-2011
1542-113-09-11

1 comment:

induravisinghj said...

निराशावादी हँसना भूल जाता है और आशावादी भूलने के लिए हँसता है।
रात के बाद ही सुबह आएगी और आएगी निश्चित ही...