किसे व्यथा
ह्रदय की सुनाऊ ?
कैसे पीड़ा
मन की बताऊँ ?
कौन मेरी मानेगा ?
कौन विश्वाश करेगा ?
जब अपने ही
पराया समझने लगे
निरंतर
ह्रदय की सुनाऊ ?
कैसे पीड़ा
मन की बताऊँ ?
कौन मेरी मानेगा ?
कौन विश्वाश करेगा ?
जब अपने ही
पराया समझने लगे
निरंतर
आरोप मुझ पर
लगाने लगे
किसी और से आशा
क्या करूँ ?
अब दोस्त दुश्मन
एक हो गए
पल पल वार कर रहे
कैसे अपने को
लगाने लगे
किसी और से आशा
क्या करूँ ?
अब दोस्त दुश्मन
एक हो गए
पल पल वार कर रहे
कैसे अपने को
बचाऊँ ?
किसे व्यथा
ह्रदय की सुनाऊ ?
कैसे पीड़ा
मन की बताऊँ ?
किसे व्यथा
ह्रदय की सुनाऊ ?
कैसे पीड़ा
मन की बताऊँ ?
17-09-2011
1517-88-09-11
No comments:
Post a Comment