Wednesday, September 21, 2011

हमें देख कर मुस्कारायेंगे

ना नज़रें मिलाते
ना देख कर मुस्कराते
निरंतर
चेहरा अपना छुपाते
खामोशी से निकल जाते
निरंतर सवालों के
घेरे में छोड़ जाते
उनकी बेरुखी
हम समझ ना सके 
इतने खुदगर्ज़ होंगे
ये भी ना मानते
उनकी भी होगी
कोई मजबूरी
हमें यकीन खुदा पर
इक दिन ये फासला
कम होगा
पाक रिश्तों के
दामन पर
कोई दाग ना होगा
वो चेहरा फिर से
दिखाएँगे
हमें देख कर
मुस्कारायेंगे
21-09-2011
1537-108-09-11

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