Tuesday, February 8, 2011

नहीं भूलते बचपन के वो बेफिक्र दिन


182--02-11


कहाँ भूलता
वो नदी का किनारा
जहां मोर नाचते
कल कल पानी की आवाज़ में
मछुआरे मछली पकड़ते
बच्चे मिल पत्थर पानी में फैंकते
निरंतर पानी से खेलते
आवाज़ माँ की आती
तो ही घर लौटते,
कहाँ भूलता वोइमली का पेड़
स्कूल से आते ही जिस पर चढ़ते
खट्टी इमली तोड़ते
खाते फिर खट्टेपन से
मुंह बिचकाते
आवाज़ फिर माँ की आती
चुपके से नीचे उतरते
कहाँ भूलता वो खेल का मैदान
जहां फिसल पटटी पर बार बार फिसलते
चकरी में गोल गोल घूमते
कभी आइस फ़ाईस खेलते
कभी दौड़ लगाते
अन्धेरा होने परघर को चलते
सब सपने हो गए
चाह कर भी नहीं लौटते
नहीं भूलते 
बचपन के वो बेफिक्र दिन
अब जीवन के चक्रव्यूह में फंसे
एक से निकलते दूसरे में फंसते
निरंतर असंतुष्टी में जीते
02-02-2011

No comments: