190--02-11
दिल बेज़ुबां
बात कैसे कहे
क्या गुजरा उस पर
किसे बताए
क्या होता
हाल इंतज़ार में
किसे समझाए
दर्द-ऐ-दिल बयाँ
किस से करे
इक वो ही समझते
बात मेरी
उन्होंने भी चोट खाई
मेरी तरह
निगाहों से जान लेते
हाल-ऐ दिल
कंधे पर हाथ रख
दिलासा देते
मुझ से भी उम्मीद
यही रखते
मैं भी हाल-ऐ दिल
उनका समझूं
कंधे पर हाथ
मैं भी रख दूं
निरंतर इक दूजे के
दिल को बहलाएँ
मलहम दिलों को
लगाएं
03-02-2011
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