Tuesday, February 8, 2011

मैं कातिल बनना चाहता हूँ


191-02-11
मैं कातिल
बनना चाहता हूँ
नफरत और अहम् का
क़त्ल करना चाहता हूँ
इन्हें जड़ से मिटाना
चाहता हूँ
फख्र से कह सकूं
नफरत और अहम् का
कातिल हूँ
ऐसा नाम चाहता हूँ
प्यार भाई चारा चाहता हूँ
"निरंतर"हंसना,हंसाना
चाहता हूँ
आंसूओं को पोंछना
चाहता हूँ
गले सब को लगाना
चाहता हूँ
प्रार्थना परमात्मा से
करता हूँ
सुन ले प्रार्थना मेरी
तमन्ना पूरी कर दे मेरी
काट सकूं जडें नफरत की
ऐसा खंजर मेरे हाथ में
दे दे
कल सूर्य के ताप में
नरमी आए
सुबह नए कलेवर में आए
ऐसी सुबह दे दे
04-02-2011

No comments: