196--02-11
अपने
पराए हुए
फलसफे पुराने
दोहराए गए
वफ़ा का सिला
बेवफाई से दे गए
अच्छा हुआ
जो मेरे साथ हुआ
किसी और के साथ
होता
चर्चा शहर में होता
वो बदनाम होते
लोग हकीकत से
वाकिफ होते
भला बुरा कहते
हमें तो आदत है
कई बार ठुकराए गए
ज़ख्म"निरंतर"खाए
इस बार भी खा लेंगे
चुपचाप सह लेंगे
फिर कोई मिलेगा
उस के हो लेंगे
जब तक रखेगा
रह लेंगे
जब निकालेगा
निकल जाएँगे
04-02-2011
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