Monday, September 5, 2011

हास्य कविता-उसका पलट कर देखना फिर मुस्काराना क्या हुआ

उसका 
पलट कर देखना
फिर मुस्काराना क्या हुआ
हँसमुखजी के दिल में
आशिकी का भूत सवार
हो गया
दिन रात उसको सपनों में
देखना शुरू कर दिया
निरंतर ख़त पर ख़त
लिखना चालु हो गया
पर  जवाब नहीं मिला
तंग हो कर एक दिन
उसके सामने खड़े हो गए
जवाब नहीं देने का
कारण पूछने लगे
कन्या बोली
अव्वल नंबर के
बेवकूफ और जाहिल हो 
मेरे मुस्काराने को तुमने
मोहब्बत का इज़हार
समझ लिया
पहली बार
बिना ताल मेल का
चेहरा देखा था
हर अंग जिसका एक
अजूबा था
इंसान तो इंसान
कुत्ते को भी हँसी आ जाए 
इस कारण हँसी थी
तुमने सोचा फँस गयी थी
अपनी गलती सुधार लो
सपने देखना बंद कर दो
नहीं तो टेढ़े मेढ़े चेहरे का
नक्शा बदल दूंगी
इंसान समझने की
गलती भी किसी से
नहीं होगी
05-09-2011
1450-22-09-11

1 comment:

तेजवानी गिरधर said...

आपकी रचनाएं साझा मंच http://saajhamanch.blogspot.com पर लगा दी हैं, मेहरबानी करके अन्यथा न लीजिएगा