विदेश में रह रहा बेटा
हर महीने माँ को
चंद हज़ार रूपये
भेज कर कर्तव्य की
इतिश्री कर लेता
ताल ठोक कर गर्व से
मित्रों को माँ के प्रति
कर्तव्य का पाठ पढाता
जानते हुए भी निरंतर
भूलता
बूढ़ी माँ को पैसे से अधिक
सहारे की आवश्यकता थी
कोई अस्पताल ले जा सके
बीमारी में विश्राम दे सके
दर्द भरे आँसूं पोंछ सके
प्यार से दो बात कर सके
दो बात उसकी सुन सके
अकेलापन कम कर सके
ऐसे किसी अपने की
कमी खलती
बेटे के भेजे हुए पैसे
खर्च नहीं होते
उसकी कुशलता के लिए
माँ निरंतर परमात्मा से
प्रार्थना करती
बचे हुए पैसे बेटे के नाम से
मंदिर में चढ़ा देती
जीने के लिए पैसा
सब कुछ नहीं होता
मन के भाव प्रकट
करती
05-09-2011
1444-19-09-11
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