Friday, March 11, 2011

बहुत क़र्ज़ है,मुझ पर,कैसे उसे चुकाऊंगा


बहुत
क़र्ज़ है,मुझ पर ,
कैसे उसे चुकाऊंगा
कैसे माँ की ममता
पिता का प्यार लौटाऊँगा
पत्नी ने हर मोड़ पर
कंधे से कंधा मिलाया 
बच्चों ने बाप के कर्तव्य का
 अर्थ समझाया
 मित्रों ने साथ सदा निभाया
नहीं चाहा जिन्होंने,
उन्होंने प्यार का महत्त्व
सिखाया
भाई बहनों का स्नेह
गुरु जनों के मार्गदर्शन को
कैसे भूल पाऊंगा
पड़ोसियों ने भाईचारे से
रहना सिखाया
लिया ही लिया जीवन में
दिया नगण्य मैंने
निरंतर सोचता हूँ
क्या क़र्ज़ चुकाए
बिना दुनिया से जाऊंगा 
जाते जाते भी बोझ
उस का ढोऊँगा
11—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

1 comment:

Dr. Yogendra Pal said...

कुछ कर्ज चुकाए नहीं जा सकते... सत्य है