क्या से
क्या हो गया
पहले दाल रोटी में
पहले दाल रोटी में
खुश था
अब पकवानों से भी
अब पकवानों से भी
पेट नहीं भरता
पहले कोई शिकायत
पहले कोई शिकायत
नहीं थी
अब शिकायतों का
अब शिकायतों का
अम्बार लग गया
आराम से बैठता था
चैन से सोता था
अब निरंतर दौड़ रहा
नींद के आगोश में
आराम से बैठता था
चैन से सोता था
अब निरंतर दौड़ रहा
नींद के आगोश में
मुश्किल से खोता
पता है मुझे ये सब
पता है मुझे ये सब
क्यों हुआ
तृष्णा के जाल में
तृष्णा के जाल में
फँस गया
जितना निकलना
जितना निकलना
चाहता
उतना ही फंसता
जाता
तृप्त से अतृप्त हो
तृप्त से अतृप्त हो
गया
भ्रम जाल में फँस
भ्रम जाल में फँस
गया
और पाने की चाहत में
और पाने की चाहत में
खुद को भूल गया
माया को सुकून
माया को सुकून
समझा
उस में ही उलझ
उस में ही उलझ
गया
जीवन रहस्य समझ
गया
23-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
479—149-03-11
2 comments:
सुंदर रचना
सुंदर रचना
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