Thursday, March 10, 2011

वो बुलंदी किस काम की,जब कोई अपना साथ ना रह सके




निरंतर
दुआ खुदा से करता हूँ
इतनी बुलंदी
पर ना पहुचाना मुझे
नीचे उतरूँ
 तो ना पहचाने कोई मुझे
ना बात
दिल की कर सकूं 
ना हंस कर
गले मिल सकूं किसी से
अकेले ज़िन्दगी काटनी पड़े
हर दिन रोना पड़े
या तो सबको बुलंदी पर
पहुँचाओ
या उनके साथ ही रहने दो
वो बुलंदी किस काम की
जब कोई अपना
साथ ना रह सके
10—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर


No comments: