Sunday, March 13, 2011

इंसान फिर क्यों सब करता रहता,मर मर कर जीता रहता


419—89-03-11 


दिन
बीत गया,रात आयी
लगा जैसे रोज़ के
झंझावत से मुक्ती मिल गयी
मगर रात अभी बाकी है
कल क्या करना
याद करना ज़रूरी है
फेहरिश्त
कल के कामों की
बन गयी
अब सोना भी ज़रूरी है
मगर नींद नहीं आ रही
कई बातें ख्यालों में आ रही
कब आँख लगी खबर
नहीं हुयी
सुबह आँख खुली
वो ही कहानी दोहरायी गयी
रोज़ की रेलम पेल
चालू हुयी
कुछ बातें ठीक हुयी,
कुछ ठीक ना हुयी
दिन भर ज़द्दोज़हद
चलती रही
निरंतर दिन ऐसे ही
कटता
सुबह शाम का पता
ना चलता
इंसान यूँ ही ज़िन्दगी
काटता रहता
सवाल मन में आता
इंसान फिर क्यों सब
करता रहता
मर मर कर जीता
रहता
हर दिन नए 
विश्वाश से उठता
उम्मीद में जीता 

जाता
13—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर