Thursday, March 17, 2011

जब करने लायक नहीं रहेगी,तब भगवान् की मर्जी सहेगी



  चौदह बरस की थी
जब शादी हुयी
ससुराल पहुँचते ही
सास ने इच्छा बतायी
काम करते करते थक गयी
घर बार की ज़िम्मेदारी अब
तुम्हें सम्हालनी
सुबह से रात तक की 
कहानी शुरू हुयी
उठते ही घर की झाड़ू 
लगानी
कुए से पानी,खेत से 
सब्जी भाजी लानी
गाय को दुहना चारा देना
घर का खाना बनाना ,
देर रात सास के पैर दबाना
फिर पती की 
फरमाइश पूरी करना
कब चेहरे पर झुर्रियां पडी, 
नज़र कमजोर हुयी ,
सास शांत हुयी,खबर नहीं हुयी
पढ़ लिख कर बेटे की नौकरी 
शहर में लग गयी
उसकी शादी हुयी, 
सोचने लगी बहु आयी
अब वो भी आराम करेगी ,
ज़िम्मेदारी बहु को सौंपेगी
अपनी इच्छा बताती 
उस से पहले
शहर से रोज़ आने जाने में 
दिक्कत होती
इस लिए बेटे ने शहर में 
रहने की इच्छा बता दी
मन मसोस कर बेटे की 
खुशी के खातिर चुप रही
अब हर महीने बेटे से पहले 
उस की चिठ्ठी आती
 साथ में लम्बी सूची आती
माँ की बहुत याद आती
उसके हाथ की बेसन की 
बर्फी बहुत भाती
शहर का  घी और सब्जी 
अच्छी नहीं होती,
लौटे तब सब साथ बाँधने की 
ताकीद होती
उसका काम और बढ़ आता
बेटा आता उसकी पसंद का 
खाना बनाना ,
हर इच्छा का ख्याल  रखना
निरंतर सोचती
दो दिन के लिए 
बहु से क्या काम कराना 
भगवान् में आस्था रखती थी
जब तक हाथ पैर चल रहे
तब तक ऐसे ही थकती रहेगी
जब करने लायक नहीं रहेगी
तब भगवान् की मर्जी सहेगी
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
441—111-03-11

1 comment:

रश्मि प्रभा... said...

jivan ka yah kram bahut ajeeb hai...yun hi jane kya kya bit jata hai