कहीं दिख जाएँ दो बात हो जाएँ
वजह बेरुखी की मालूम हो जाए
निरंतर दुआ खुदा से करता
सारे शहर में उन्हें ढूंढता
मिलना तो दूर कोई पैगाम भी नहीं
कहाँ खो गए किसी को पता नहीं
हाल-ऐ-दिल ना पूछिए
जब पता
उनके दुनिया छोड़ने का चला
वो ख़त मिला जो हमें उन्होंने लिखा
उनके ज़न्नत नशीं होने को हमने
बेरुखी समझा
हालात को अपने नज़रिए से देखा
निरंतर रोता हूँ अपनी नादानी पर
रोता रहूँगा
जब तक माफी ना मांगूंगा
ऊपर जा कर
12—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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