Saturday, March 12, 2011

रोता रहूँगा जब तक माफी ना मांगूंगा ऊपर जा कर



कहीं दिख जाएँ दो बात हो जाएँ
वजह बेरुखी की मालूम हो जाए

निरंतर दुआ खुदा से करता
सारे शहर में उन्हें ढूंढता

मिलना तो दूर कोई पैगाम भी नहीं
कहाँ खो गए किसी को पता नहीं

हाल-ऐ-दिल ना पूछिए
जब पता
उनके दुनिया छोड़ने का चला

  वो ख़त मिला जो हमें उन्होंने लिखा  
उनके ज़न्नत नशीं होने को हमने
बेरुखी समझा


हालात को अपने नज़रिए से देखा
निरंतर रोता हूँ अपनी नादानी पर
रोता रहूँगा
जब तक माफी ना मांगूंगा 
ऊपर जा कर

12—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

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