एक मित्र बोला मुझसे
तुम कविता लिखते हो
अच्छा करते हो
मगर प्रबुद्ध कवी नहीं
लगते हो
आम बोलचाल की भाषा में
सपाट लिखते हो
ना अलंकरण लगाते हो
ना शब्दों को सजाते हो
समझने के लिए दिमाग
लगाना पड़े
ऐसे क्यों नहीं लिखते हो
मैं बोला मित्रवर
आम आदमी के लिए
लिखता हूँ
निरंतर इसी कोशिश में
रहता हूँ
सिर्फ किताबों तक सीमित
रहूँ
नहीं चाहता हूँ
हिंदी का ज्यादा ज्ञान
नहीं जिन्हें
उनको भी समझ आए
मेरी बात आसानी से
समझ जाएँ
इस लिए बोलचाल की
भाषा में लिखता हूँ
14—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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