Friday, March 11, 2011

समय रहते नींद से जागना होगा,पर्यावरण को बचाना होगा





क्यों आँगन मैं
अब तितलियाँ नहीं दिखती 
क्यों रात अब
जुगनूओं से नहीं चमकती
हवा में रवानी नहीं होती
फूलों की महक नहीं भाती
बहार क्यूं
अब खिजा सी लगती
कोई बताये मुझे
प्रकृती से क्यों
 इतनी छेड़ छाड़ होती
स्वार्थ के लिए
निरंतर उस की दुर्गती होती
कब समझ इंसान को आएगी
इश्वर की नाराजगी उसे
झेलनी पड़ेगी
कभी सुनामी कभी भूकंप से
धरती कांपेगी
सर्दी में गर्मी,गर्मी में सर्दी होगी
वर्षा ऋतु ,बिना वर्षा रहेगी
अब सबको कमर कसनी पड़ेगी
समय रहते नींद से जागना होगा
पर्यावरण को बचाना होगा
11—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

1 comment:

Dr. Yogendra Pal said...

बहुत सुन्दर,

पर एक जिज्ञासा है आपने यह सब एक ही दिन में लिखा है?