तुम पढो ना पढो
मैं तो लिखता रहता हूँ
हाल-ऐ-दिल
ज़रिये कलम बताता हूँ
कभी तो
दिल तुम्हारा पसीजेगा
ख्याल मेरा भी आएगा
पैगाम मुझे भेजोगे
मिलने की सोचोगे
निरंतर
इंतज़ार में रहता हूँ
फ़ोन की
घंटी पर दौड़ता हूँ
रोज़
डाकिये से पूंछता हूँ
उम्मीद में जीता हूँ
14—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
2 comments:
tum padho na padho .... bahut hi achhi rachna .
मौसम बदला, पतझड़ आया is rachna ko vatvriksh ke liye bhejen parichay tasweer blog link ke saath rasprabha@gmail.com per
http://urvija.parikalpnaa.com/
चलिए, वो पढ़ तो लें मगर आप भी पढ़े तो और अच्छा...हा हा! :)
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