426—96-03-11
हमारे तुम्हारे बीच इक करार था
किसी कागज़ पर ना लिखा था
दिल से दिल का रिश्ता था
मन में ख्याल इक दूजे का था
ना मिलना था,ना बिछड़ना था
ना साथ आशियाना बनाना था
ना इंतज़ार किसी को रहता था
बस चाहत का तकाजा था
ना चाहत को कोई रोक सकता
ना जबरदस्ती किसी को चाह सकता
चाहत हो तो मन नहीं मानता
निरंतर दिल मिलने का करता
मन दोनों का ना मानता था
सिर्फ इंसानियत का रिश्ता था
13—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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