425—95-03-11
तुम याद रखो ना रखो
लब्जों से कहो ना कहो
हकीकत कैसे मिटाओगे
वो लम्हे कैसे भुलाओगे
उन आँखों से कैसे बचोगे
जिन्होंने देखा साथ हमको
खतों को झुठलाओगे कैसे
जो लिखे तुमने हमको
वो तसवीरें कैसे बदलोगे
जो खिंचवाई साथ हमने
निरंतर
दिल को चुप करोगे कैसे
जो रोयेगा याद करके हमको
ख़्वाबों
में आने से रोकोगे कैसे
जिन्हें
देखने की आदत हमको
ख्यालों
को काबू में करोगे कैसे
परेशाँ तुम्हें
करेंगे,याद कर के हमको
13—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
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