Sunday, March 13, 2011

वादे तो तुम ने किये मुझ से निरंतर ,किसी और से निभाओ कैसे हो सकता


424—94-03-11


अब नज़रें फिराने से क्या फर्क पडेगा
दिल कुछ ना कहता  ,कैसे हो सकता

उम्र तो तुम्हारी  कटी मेरे  इंतज़ार में
अब याद ना करो  ,ये कैसे हो सकता

ख़्वाबों में तुम ने अब तक मुझे  देखा
अब ख्यालों में नहीं आऊँ,कैसे हो सकता

दिल अब किसी और से लगाया तुमने
मुझ से रिश्ता टूट जाए,कैसे हो सकता

वादे तो तुम ने किये मुझ से निरंतर
किसी और से निभाओ कैसे हो सकता
13—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
 

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