ना तड़पो इतना
ना मोम सा पिघलो
इतना
कि हाथ किसी के ना
आओ कभी
निरंतर दुआ खुदा से
करो
खुद पर विश्वाश रखो
अपने प्यार पर यकीन
रखो
तुम्हारा इंतज़ार भी कोई
करता होगा
बिना तुम्हारे वो भी
रोता होगा
निरंतर तड़पता होगा
गर वो भी पिघल
गया
तो कैसे फिर मिल
पाओगे
खुद तो जाओगे
उसे भी ज़न्नत
पहुँचाओगे
15—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
439—109-03-11
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