रिश्तों पर विराम
लग गया
अहम् अब अहम्
हो गया
कौन पहल करे
सवाल खडा हो गया
इक दूजे के जहन में
दिन रात सवार हो गया
दिलों में जहर भर गया
निरंतर ध्यान दूजे का
रहता
किसे क्या कहाँ
मालूम करता रहता
मन किसी का चैन से
ना रहता
तिल का ताड़ बन गया
सहयोग दोनों का रहा
जो पहल करे
वो छोटा हो गया
इज्ज़त का सवाल
हो गया
अहम् जीत गया
भाई चारा हार गया
19-03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
448—117-03-11
1 comment:
her kadam per izzat , aham ... ajeeb sthiti hai
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