पिंजरे में बंद हूँ,
स्वछंद उड़ना
चाहता हूँ
दीवार रहित
मकान में रहना
चाहता हूँ
बंधन सारे तोड़ना
चाहता हूँ
खुली हवा में
सांस लेना चाहता हूँ
आडम्बर से दूर जाना
चाहता हूँ
झूंठ फरेब से मुक्त
निरंतर उन्मुक्त रहना
चाहता हूँ
जात,पांत,भाषा,धर्म के
चक्रव्यूह से निकलना
चाहता हूँ
इंसान हूँ इंसान की तरह
जीना चाहता हूँ
04-01-2011
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